चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक और कूटनीतिक युद्ध अब एक नए और खतरनाक मोड़ पर पहुँच गया है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा ताइवान को 11.1 बिलियन डॉलर (करीब 93,000 करोड़ रुपये) के रिकॉर्ड हथियार पैकेज की मंजूरी दिए जाने के बाद बीजिंग ने कड़ी जवाबी कार्रवाई की है। चीन ने न केवल 20 अमेरिकी रक्षा कंपनियों (Defense Firms) और उनके शीर्ष अधिकारियों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं, बल्कि वाशिंगटन को 'पहली रेड लाइन' पार न करने की अंतिम चेतावनी भी दी है।
चीन की जवाबी कार्रवाई: 20 कंपनियां और 10 अधिकारी निशाने पर
चीनी विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान जारी कर कहा कि बीजिंग ने उन 20 अमेरिकी सैन्य-संबंधित फर्मों और 10 वरिष्ठ अधिकारियों की पहचान की है, जो पिछले कुछ वर्षों में ताइवान को घातक हथियारों की आपूर्ति में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं। इन कंपनियों की संपत्तियों को चीन में फ्रीज (Freeze) किया जा सकता है और उनके अधिकारियों के चीन प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है।
बीजिंग ने स्पष्ट रूप से कहा कि ताइवान का मुद्दा चीन के "अहम हितों के केंद्र में" है। चीन इसे अपना अटूट हिस्सा मानता है और अमेरिका द्वारा ताइवान को सैन्य रूप से सशक्त करना उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को सीधी चुनौती है।
'वन चाइना पॉलिसी' और रेड लाइन की चेतावनी
चीनी विदेश मंत्रालय ने अमेरिका को याद दिलाया कि 'एक-चीन सिद्धांत' (One-China Principle) ही चीन-अमेरिका संबंधों की बुनियाद है। चीन के अनुसार:
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ताइवान जलडमरूमध्य (Taiwan Strait) में शांति और स्थिरता को अमेरिका के हथियारों के सौदे से खतरा पैदा हो रहा है।
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अमेरिका 'ताइवान स्वतंत्रता' की अलगाववादी ताकतों को गलत संकेत भेज रहा है।
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चीन ने चेतावनी दी है कि जो भी इस 'रेड लाइन' को पार करेगा, उसे बीजिंग के "कड़े और निर्णायक जवाब" का सामना करना पड़ेगा।
क्या था 11.1 बिलियन डॉलर का हथियार पैकेज?
हाल ही में अमेरिकी विदेश विभाग ने ताइवान के लिए एक विशाल सुरक्षा सहायता पैकेज को मंजूरी दी है। इस डील में शामिल अत्याधुनिक हथियारों ने चीन की नींद उड़ा दी है:
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HIMARS लॉन्चर: लंबी दूरी तक मार करने वाले रॉकेट सिस्टम।
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मिसाइल और ड्रोन: उन्नत सुरक्षा और निगरानी के लिए एआई-पावर्ड ड्रोन सिस्टम।
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भारी तोपखाना: ताइवान की तटीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए भारी हथियार।
प्रतिबंधों का वास्तविक असर: प्रतीकात्मक या प्रभावी?
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन द्वारा लगाए गए ये प्रतिबंध काफी हद तक प्रतीकात्मक (Symbolic) हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि अधिकांश बड़ी अमेरिकी रक्षा कंपनियां (जैसे लॉकहीड मार्टिन या रेथियॉन) पहले से ही चीन के साथ कोई प्रत्यक्ष व्यापारिक संबंध नहीं रखती हैं। हालांकि, ये प्रतिबंध उन अधिकारियों और कंपनियों के लिए परेशानी पैदा कर सकते हैं जिनके चीन में अप्रत्यक्ष हित या भविष्य की व्यावसायिक योजनाएं थीं। यह कदम वैश्विक मंच पर चीन की नाराजगी और शक्ति प्रदर्शन का एक जरिया मात्र है।
निष्कर्ष
ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच बढ़ता तनाव वैश्विक सुरक्षा के लिए चिंता का विषय है। एक तरफ अमेरिका ताइवान को "हथियारों का गोदाम" बनाकर चीन के संभावित हमले को रोकना चाहता है, तो दूसरी तरफ चीन इसे अपनी घेराबंदी के रूप में देख रहा है। 20 अमेरिकी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाकर चीन ने संदेश दिया है कि वह अपनी क्षेत्रीय अखंडता के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। अब देखना यह होगा कि ट्रंप प्रशासन इस आर्थिक और सामरिक जवाबी कार्रवाई पर क्या प्रतिक्रिया देता है।