ईरान इस समय अपने आधुनिक इतिहास के सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। 86 वर्षीय सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह अली खामेनेई के दशकों पुराने शासन के खिलाफ जनता का आक्रोश अब केवल छिटपुट विरोध नहीं, बल्कि एक व्यवस्थित विद्रोह का रूप ले चुका है। पिछले तीन दिनों से तेहरान की गलियों से लेकर मशहद के बाजारों तक "तानाशाह मरेगा" के नारों ने सत्ता के गलियारों में हलचल मचा दी है।
यहाँ उन 5 संकेतों का विस्तृत विश्लेषण है जो बताते हैं कि ईरान में खामेनेई युग के अंत की शुरुआत हो चुकी है:
1. डर के साम्राज्य का पतन: युवाओं का विद्रोह
ईरान की आधी से अधिक आबादी 30 वर्ष से कम आयु की है, जो अब इस्लामिक कट्टरपंथ के साये में जीने को तैयार नहीं है। दिसंबर की शुरुआत में किश आइलैंड मैराथन में महिलाओं का बिना हिजाब दौड़ना कोई साधारण घटना नहीं थी; यह सत्ता के 'मोरैलिटी पुलिसिंग' के मुंह पर तमाचा था। जब युवा पीढ़ी जेल और जुर्माने के डर को त्याग देती है, तो समझ लेना चाहिए कि शासन की नैतिक पकड़ ढीली हो चुकी है।
2. रियाल का ऐतिहासिक पतन और आर्थिक बदहाली
अर्थव्यवस्था किसी भी शासन की रीढ़ होती है, और ईरान की रीढ़ टूट चुकी है।
-
मुद्रा संकट: एक डॉलर के मुकाबले रियाल का 14.2 लाख के स्तर पर गिरना जनता की क्रय शक्ति को खत्म कर चुका है।
-
महंगाई: 42.2% की सामान्य महंगाई और 72% की खाद्य महंगाई ने मध्यम वर्ग को गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया है। तेहरान के ग्रैंड बाजार के दुकानदारों का हड़ताल पर जाना यह बताता है कि अब व्यापारी वर्ग भी शासन के खिलाफ खड़ा है।
3. 'पानी' के लिए हाहाकार: एक अस्तित्वगत संकट
ईरान केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय त्रासदी की ओर भी बढ़ रहा है। पिछले छह वर्षों से जारी सूखे ने 20 से अधिक प्रांतों को बंजर बना दिया है। जब बुनियादी संसाधनों (रोटी और पानी) की किल्लत होती है, तो वैचारिक क्रांतियां 'पेट की आग' में बदल जाती हैं। ग्रामीण ईरान, जो कभी शासन का आधार हुआ करता था, अब पानी की कमी के कारण तेहरान के खिलाफ खड़ा है।
4. विरोध का बढ़ता दायरा: बाजारों से विश्वविद्यालयों तक
2022 में महसा अमीनी की मौत के बाद जो चिंगारी सुलगी थी, वह अब दावानल बन चुकी है। वर्तमान प्रदर्शनों की विशेषता यह है कि इसमें समाज के सभी वर्ग—छात्र, मजदूर, व्यापारी और महिलाएं—एक साथ आ गए हैं। ईरान के विश्वविद्यालय अब केवल शिक्षा के केंद्र नहीं, बल्कि शासन विरोधी रणनीतियों के गढ़ बन गए हैं।
5. कूटनीतिक घेराबंदी और बाहरी दबाव
ईरान इस समय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह अलग-थलग पड़ चुका है।
-
सैन्य खतरा: इजराइल और अमेरिका के बीच ईरान के परमाणु ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई को लेकर बढ़ती सहमति ने खामेनेई की चिंता बढ़ा दी है।
-
निर्वासित नेतृत्व: शहजादे रज़ा पहलवी का बढ़ता प्रभाव और प्रदर्शनकारियों को उनके द्वारा दी जा रही दिशा, शासन के लिए एक 'वैकल्पिक नेतृत्व' का संकेत है।
निष्कर्ष: क्या यह 1979 जैसी क्रांति है?
1979 की इस्लामिक क्रांति ने शाह के शासन को उखाड़ फेंका था, और आज ठीक वैसी ही परिस्थितियां खामेनेई के खिलाफ बन रही हैं। गहराता आर्थिक संकट और युवाओं का अदम्य साहस यह इशारा कर रहा है कि ईरान एक बड़े राजनीतिक परिवर्तन की दहलीज पर खड़ा है। यदि विरोध का यह सिलसिला इसी गति से जारी रहा, तो 2026 ईरान के लिए एक नए युग का उदय साबित हो सकता है।