भारतीय लोकतंत्र के मंदिर, देश की संसद के लिए 13 दिसंबर 2001 का दिन एक काली सुबह से कम नहीं था। संसद में शीतकालीन सत्र चल रहा था। घड़ी में सुबह के 11 बजकर 28 मिनट का समय हुआ था। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नेता प्रतिपक्ष सोनिया गांधी सदन से बाहर निकल चुके थे, क्योंकि विपक्ष के हंगामे के कारण लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही को 40 मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया था।
किसे पता था कि कुछ ही देर में संसद भवन का पूरा परिसर AK47 की गोलियों की गूंज में लिपट जाएगा। सदन स्थगित होने के बावजूद, तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी, कई मंत्री समेत करीब 200 सांसद अभी भी संसद भवन के भीतर मौजूद थे।
उपराष्ट्रपति के काफिले से भिड़े आतंकी
ठीक 11 बजकर 29 मिनट पर, अप्रत्याशित घटनाक्रम शुरू हुआ। तत्कालीन उपराष्ट्रपति के इंतजार में उनका 4 गाड़ियों का काफिला गेट नंबर 11 के पास खड़ा था। तभी अचानक एक सफेद एंबेसडर कार तेज स्पीड में संसद भवन कॉम्प्लेक्स के भीतर प्रवेश कर गई।
इससे पहले कि लोकसभा के सुरक्षाकर्मी कोई कदम उठा पाते, आतंकियों ने कार की दिशा बदल दी और जोर से उपराष्ट्रपति के काफिले की एक कार में टक्कर मार दी।
गोलियों की तड़तड़ाहट और सुरक्षाकर्मियों का शौर्य
कार टकराने के बाद, आतंकियों से सब इंस्पेक्टर जीतराम की हाथापाई हुई। जीतराम को तुरंत अंदाज़ा हो गया था कि आतंकी AK47 और बड़े मंसूबों के साथ यहां आए हैं। उन्होंने आतंकी का कॉलर छोड़कर अपनी रिवॉल्वर थामी और पहली गोली चला दी।
इसके साथ ही, संसद भवन कॉम्प्लेक्स गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा।
वहां मौजूद आतंकी कार से उतरकर तार बिछाने लगे थे। उनका नापाक मकसद था कि वे उस कार को बम से वहीं पर उड़ा दें और संसद भवन को गंभीर नुकसान पहुंचाने में कामयाब हो जाएं।
सुरक्षाकर्मियों ने अभूतपूर्व शौर्य का प्रदर्शन करते हुए तुरंत जवाबी कार्रवाई की। गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी समेत सभी सांसदों को सुरक्षित जगह पर शिफ्ट किया गया। संसद भवन के सभी दरवाजों को एक-एक करके बंद कर दिया गया, ताकि आतंकी किसी भी गेट से अंदर न घुस सकें।
9 लोगों ने गंवाई जान
बाहर रणभूमि बने संसद कॉम्प्लेक्स में सुरक्षाबलों ने बहादुरी से मोर्चा संभाला। आतंकियों में अपनी दहशत को बढ़ाने के लिए एक आतंकी ने खुद को बम से उड़ा लिया और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद, सुरक्षाबलों ने तीन और आतंकियों को ढेर कर दिया। एक अंतिम आतंकी किसी तरह से भीतर घुसने की कोशिश कर रहा था, मगर उसे भी मार गिराया गया।
इस हमले में देश के 8 वीर सुरक्षाबलों (जिसमें सीआरपीएफ की एक महिला जवान भी शामिल थीं) सहित संसद के एक कर्मचारी की दुखद मौत हो गई।
हमले के बाद जांच में पता चला कि हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु ने अपने एक साथी के साथ मिलकर यह कार एक शख्स हरपाल सिंह की दुकान से हमले से महज दो दिन पहले खरीदी थी। अफजल गुरु को इस मामले में दोषी ठहराया गया और 9 फरवरी 2013 को उसे फांसी (सजा-ए-मौत) दे दी गई थी। इस हमले ने भारतीय सुरक्षा तंत्र को झकझोर कर रख दिया था, लेकिन हमारे सुरक्षाकर्मियों के बलिदान ने लोकतंत्र के मंदिर को बचा लिया।