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सड़क पर झाड़ू लगाकर 1 लाख के ऊपर कमा रहा है सॉफ्टवेयर इंजीनियर, आखिर क्यों मिल रहे इतने पैसे?

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Posted On:Monday, December 22, 2025

अक्सर जब हम किसी उच्च शिक्षित युवा के बारे में सोचते हैं, तो हमारे दिमाग में डॉक्टर, इंजीनियर या किसी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी (MNC) के एयर-कंडीशंड केबिन में बैठे सॉफ्टवेयर डेवलपर की छवि उभरती है। लेकिन दुनिया के बदलते आर्थिक परिदृश्य और अवसरों की खोज ने इस धारणा को कई बार चुनौती दी है। ऐसी ही एक चौंकाने वाली और प्रेरक कहानी है 26 वर्षीय मुकेश मंडल की, जो पेशे से तो एक सॉफ्टवेयर डेवलपर हैं, लेकिन वर्तमान में रूस की सड़कों पर सफाई कर्मचारी के रूप में काम कर रहे हैं।

तकनीक की दुनिया से सेंट पीटर्सबर्ग की सड़कों तक

मुकेश मंडल की कहानी तब चर्चा में आई जब उन्होंने रूसी मीडिया आउटलेट 'फोंटांका' (Fontanka) से अपनी नई नौकरी और जीवन के बारे में बात की। मुकेश उन 17 भारतीय मजदूरों के समूह का हिस्सा हैं, जिन्हें रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में एक रोड मेंटेनेंस कंपनी 'कोलोम्याजस्कोये' (Kolomyazhskoye JSC) द्वारा भर्ती किया गया है।

मुकेश का दावा है कि रूस आने से पहले वे टेक सेक्टर में सक्रिय थे। उन्होंने बताया, “मैंने माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के साथ काम किया है और मेरा अनुभव AI, चैटबॉट, GPT और नई तकनीकों के क्षेत्र में है। मैं एक डेवलपर हूं।” हालांकि उनके पुराने कार्यस्थलों की आधिकारिक पुष्टि होना अभी बाकी है, लेकिन उनका तकनीकी ज्ञान उनकी बातों से स्पष्ट झलकता है।

क्यों चुना यह रास्ता?

एक सॉफ्टवेयर डेवलपर का सफाई कर्मचारी के रूप में काम करना पहली नजर में अजीब लग सकता है, लेकिन इसके पीछे की वजह विशुद्ध रूप से वित्तीय और व्यावहारिक है। मुकेश का कहना है कि वे रूस में अस्थायी रूप से केवल पैसा कमाने के उद्देश्य से आए हैं।

आकर्षक वेतन और सुविधाएं: रूस में इस काम के बदले मिलने वाला वेतन किसी औसत भारतीय टेक कर्मचारी की शुरुआती सैलरी से कहीं अधिक है।

  • वेतन: प्रत्येक मजदूर को लगभग 1,00,000 रूबल मिलते हैं, जो भारतीय मुद्रा में करीब 1.1 लाख रुपये प्रति माह है।

  • सुविधाएं: कंपनी न केवल उनके रहने-खाने का खर्च उठाती है, बल्कि उन्हें काम की जगह तक लाने-ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट और विशेष सुरक्षा कपड़े भी प्रदान करती है।

विविधता से भरा भारतीय समूह

मुकेश इस काम को करने वाले अकेले भारतीय नहीं हैं। उनके ग्रुप में 19 से 43 साल के लोग शामिल हैं, जो भारत के अलग-अलग प्रोफेशनल बैकग्राउंड से आते हैं। यह समूह इस बात का प्रतीक है कि आज का युवा अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी भी काम को छोटा नहीं समझता। इस समूह में:

  • किसान और छोटे व्यापारी हैं।

  • वेडिंग प्लानर, ड्राइवर और टैनर (चमड़ा शोधक) शामिल हैं।

  • यहाँ तक कि एक आर्किटेक्ट और सॉफ्टवेयर डेवलपर (मुकेश) भी कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं।

कंपनी का नजरिया

'कोलोम्याजस्कोये' (Kolomyazhskoye JSC) के कॉम्प्रिहेंसिव क्लीनिंग डिपार्टमेंट की एक्टिंग हेड मारिया ट्याबिना के अनुसार, कंपनी इन कर्मचारियों के पेपरवर्क से लेकर उनकी सुरक्षा और भोजन तक का पूरा ख्याल रखती है। उनके लिए डॉर्म (Dormitory) की व्यवस्था की गई है, जहाँ से उन्हें काम पर ले जाया जाता है।

निष्कर्ष: श्रम की गरिमा और बदलता लक्ष्य

मुकेश मंडल की कहानी हमें 'श्रम की गरिमा' (Dignity of Labour) का पाठ पढ़ाती है। वे रूस में केवल कुछ महीने रहकर अच्छी बचत करना चाहते हैं और फिर भारत लौटकर अपने करियर को नई दिशा देना चाहते हैं। उनका यह सफर दिखाता है कि डिग्री केवल दफ्तरों तक सीमित नहीं होती; कभी-कभी जीवन की जरूरतों को पूरा करने के लिए इंसान को लीक से हटकर भी फैसले लेने पड़ते हैं।


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