अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर दावा किया है कि उन्होंने अब तक आठ युद्ध रोके हैं और लाखों जानें बचाई हैं, हालांकि उन्हें इसके लिए नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिला। ट्रम्प ने यह बात शुक्रवार को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के साथ व्हाइट हाउस में लंच के दौरान मीडिया से बातचीत में कही और साथ ही कहा कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच जारी संघर्ष उनके लिए “आसान” है और यदि आवश्यक हुआ तो वे इसे सुलझा सकेंगे।
ट्रम्प ने संवाददाताओं से कहा कि उन्हें लोगों को मारे जाने से रोकना अच्छा लगता है और वे मानते हैं कि संघर्षों को समाप्त करके जीवन बचाना उनकी प्राथमिकता है। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार वे युद्धों को सुलझाते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मीडिया उन्हें हर बार उसी तरह श्रद्धा नहीं देता जितनी अपेक्षा की जाती है — और यही कारण है कि उन्हें नोबेल पुरस्कार नहीं मिला। ट्रम्प ने कहा, “मुझे नोबेल नहीं मिला — किसी और को मिला — लेकिन मैं यह सब इसलिए नहीं कर रहा कि मुझे कोई पुरस्कार मिले; मैं लोगों की जान बचाना चाहता हूँ।”
अफगानिस्तान-पाकिस्तान के हालिया तनाव का उल्लेख करते हुए ट्रम्प ने कहा कि दोनों देशों के बीच जो झड़पें चल रही हैं, उन्हें सुलझाना उनके लिए कठिन काम नहीं होगा। उन्होंने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है जब सीमा पर बढ़ती हिंसा और हवाई हमलों की रिपोर्टें सामने आ रही हैं और क्षेत्रीय संकट अंतरराष्ट्रीय ध्यान का केंद्र बना हुआ है। ट्रम्प ने इस तरह के मामलों में अपनी मध्यस्थता की क्षमता पर भरोसा जताया और कहा कि वे जल्द ही ऐसे ही संकटों पर हाथ डालेंगे।
विश्लेषक कहते हैं कि ट्रम्प का युद्धों को सुलझाने का यह दावा — और नोबेल को लेकर निराशा — उनकी वैश्विक छवि और विदेश नीति पर केंद्रित रणनीति का हिस्सा है, जिससे वे खुद को ‘शांति निर्माता’ के रूप में प्रस्तुत करते हैं। आलोचक उन्हें यह याद दिलाते हैं कि शांति स्थापित करना जटिल कूटनीतिक प्रयासों और दीर्घकालिक संवैधानिक प्रतिबद्धताओं की मांग करता है, न कि केवल घोषणाओं का। साथ ही, कई विश्लेषणों ने ट्रम्प के इन दावों की तथ्य-जाँच और समीक्षात्मक परख की भी सलाह दी है।
व्हाइट हाउस के बाहर और वैश्विक स्तर पर ट्रम्प के बयानों ने मिश्रित प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न की हैं — कुछ देशों और राजनयिकों ने उनके मध्यस्थ बनने की संभावनाओं पर तवज्जो दी है, तो दूसरी ओर आलोचकों ने कहा है कि किसी भी क्षेत्रीय संघर्ष के वास्तविक समाधान के लिए ट्रम्प की रणनीति और उपलब्ध संसाधनों पर संदेह बरकरार है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे दावे तब तक सार्थक नहीं माने जा सकते जब तक कि इसके पीछे ठोस कूटनीतिक पहल, साझेदार राष्ट्रों की सहमति और स्पष्ट योजना न हो।
नतीजा यह है कि ट्रम्प की घोषणाएँ फिर से वैश्विक मीडिया का विषय बन गई हैं — जहां एक ओर उनके समर्थक इसे साहसिक विदेश नीति की मिसाल मानते हैं, वहीं विपक्ष और कई नीति विशेषज्ञ इसे बड़े दावे के साथ जिम्मेदार राजनीति की कमी कहा रहे हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या ट्रम्प अपने दावों को व्यवहारिक कूटनीति में तब्दील कर पाते हैं या वे केवल राजनीतिक रैली-बयान तक सीमित रहेंगे।