मुंबई, 17 नवंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन) आधुनिक जीवन में स्मार्टफोन और इंटरनेट की अनिवार्यता बढ़ती जा रही है, लेकिन इसके हानिकारक प्रभावों को देखते हुए 'डिजिटल डिटॉक्स' या डिजिटल दुनिया से दूरी बनाने की इच्छा भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ी है। हालांकि, एक नया सवाल खड़ा हो गया है: क्या तनाव और अनिद्रा को कम करने वाला यह डिटॉक्स अब केवल एक विलासिता (Luxury) बनकर रह गया है, जो सिर्फ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए ही सुलभ है, या इसे एक सामूहिक मौलिक अधिकार के रूप में देखा जाना चाहिए?
हाल के आंकड़ों और अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि डिस्कनेक्ट होने की क्षमता अब व्यक्तिगत आर्थिक और सांस्कृतिक संसाधनों पर निर्भर करती जा रही है, जिससे समाज में एक नया डिजिटल विभाजन पैदा हो रहा है।
बढ़ते खतरे और 'कैप्टोलॉजी' का जाल
अत्यधिक स्क्रीन टाइम के हानिकारक प्रभाव अब जगजाहिर हो चुके हैं। यह चिंता (anxiety) को बढ़ाता है, नींद संबंधी विकारों को बदतर करता है, और एकाग्रता में कमी लाता है। चिंताजनक बात यह है कि स्क्रीन के अत्यधिक उपयोग और युवाओं में आत्महत्या के बढ़ते मामलों के बीच सीधा संबंध पाया गया है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में 2010 के दशक में युवा लड़कियों में आत्महत्या की दर में 168 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
इस समस्या की जड़ में वह तकनीक है जिसे विशेषज्ञ 'कैप्टोलॉजी' कहते हैं। प्रमुख डिजिटल प्लेटफॉर्म व्यवहार विज्ञान का उपयोग करके अपने इंटरफेस को अनुकूलित करते हैं, जिससे उनके एल्गोरिदम उपयोगकर्ताओं का ध्यान आकर्षित कर सकें और उन्हें यथासंभव लंबे समय तक प्लेटफॉर्म पर बनाए रख सकें। नेटफ्लिक्स के सीईओ रीड हेस्टिंग्स ने 2017 में ही कहा था, "नेटफ्लिक्स नींद के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है।" यह सामूहिक जागरूकता ही अब एक सार्वजनिक बहस छेड़ रही है कि डिजिटल दुनिया से कटे बिना हम अपना नियंत्रण कैसे हासिल करें।
'डिसकनेक्शन इकोनॉमी' और विलासिता का बाजार
इन चिंताओं के जवाब में, एक पूरी 'डिसकनेक्शन इकोनॉमी' उभर आई है। यूट्यूब पर 'डिजिटल डिटॉक्स' दिखाने वाले इन्फ्लुएंसर वीडियो लाखों में देखे जाते हैं। कई विशेषज्ञ अब भुगतान वाले न्यूज़लेटर और प्रशिक्षण पाठ्यक्रम चला रहे हैं जो लोगों को "स्क्रीन से मुक्त होने" में मदद करने का वादा करते हैं।
पर्यटन क्षेत्र में, "डिजिटल डिटॉक्स" गेटअवे - जहां फोन वर्जित होते हैं और पूरा ध्यान कल्याण (well-being) पर होता है - की संख्या बढ़ रही है, लेकिन अक्सर इनकी कीमतें काफी ऊँची होती हैं।
इसके अलावा, प्रौद्योगिकी से दूरी बनाने के लिए 'डंब डिवाइस' (Dumb Devices) भी एक नया ट्रेंड बन गए हैं। ये ऐसे फोन या टैबलेट होते हैं जो जानबूझकर केवल आवश्यक कार्यों तक सीमित होते हैं, जैसे कि लाइट फोन (Light Phone) या रीमार्केबल (ReMarkable)। ये उपकरण व्याकुलता को कम करने का वादा करते हैं, लेकिन इनकी कीमतें हाई-एंड मॉडल के बराबर (€699 और €599) होती हैं।
इन उत्पादों का मार्केटिंग संदेश मुख्य रूप से कार्यकारी अधिकारियों, रचनात्मक पेशेवरों और फ्रीलांसरों जैसे विशिष्ट दर्शकों को लक्षित करता है—यानी, वे लोग जिनके पास डिस्कनेक्ट होने के लिए समय, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और आर्थिक संसाधन हैं।
आम आदमी के लिए डिस्कनेक्शन असंभव
डिजिटल डिटॉक्स के इस बाजारीकरण का सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि अधिकांश लोगों के लिए स्क्रीन से बचना अब लगभग असंभव है। बैंक खातों के लिए दो-कारक प्रमाणीकरण (Two-factor authentication), सरकारी प्रशासनिक प्रक्रियाएं, और ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफॉर्म ने स्मार्टफोन को एक अनिवार्य उपकरण बना दिया है।
इस प्रकार, "डिस्कनेक्ट होने का अधिकार" एक उपभोक्ता उत्पाद में बदलता जा रहा है, जो केवल उन्हीं लोगों के लिए एक विलासिता है जो इसे खरीद सकते हैं। मौजूदा समाधान केवल व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर निर्भर करते हैं, जिसका अर्थ है कि यह पूरी तरह से व्यक्ति के आर्थिक और सांस्कृतिक संसाधनों पर निर्भर करता है।
सामूहिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया की ओर
इस संरचनात्मक निर्भरता के सामने, अब कुछ नागरिक और राजनीतिक पहलें सामने आ रही हैं। ये पहल डिस्कनेक्शन को एक विलासिता के बजाय एक सामूहिक अधिकार बनाने की दिशा में काम कर रही हैं। यह मुद्दा अब सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और लोकतंत्र के चौराहे पर खड़ा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि हमारी एकाग्रता और स्वायत्तता को पुनः प्राप्त करने का अधिकार केवल निजी संस्थाओं पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इस दिशा में सामूहिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आवश्यक हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डिजिटल डिटॉक्स हर नागरिक का मौलिक अधिकार हो, न कि केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की विलासिता।