भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई को नया अध्यक्ष अगले 48 घंटों में मिल जाएगा। माना जा रहा है कि वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी ऐसा चेहरा चुनना चाहती है, जो संगठन को मज़बूत करने के साथ-साथ जातीय समीकरणों को भी साध सके। बीजेपी अध्यक्ष की रेस में इस समय कई नाम शामिल हैं—केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी, बीएल वर्मा, धर्मपाल लोधी, हरीश द्विवेदी और गोविंद शुक्ला। अंतिम फैसला 14 दिसंबर को होगा, लेकिन उससे पहले यह समझना बेहद जरूरी है कि आखिर जातीय समीकरण इस चुनाव में इतने अहम क्यों हो गए हैं।
क्यों बढ़ी कुर्मी समाज की चर्चा?
बीते लोकसभा चुनाव ने बीजेपी को साफ संकेत दिया कि कुर्मी समुदाय कई क्षेत्रों में पार्टी से नाराज़ दिखा। राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा बताते हैं कि कुर्मी बहुल सीटों पर समाजवादी पार्टी का स्ट्राइक रेट बीजेपी से बेहतर रहा, जिससे बीजेपी को नुकसान हुआ।
कुर्मी समुदाय का प्रभाव यूपी के पूर्वांचल, अवध, बुंदेलखंड और रूहेलखंड तक फैला हुआ है। पश्चिमी यूपी छोड़ दें, तो यह वर्ग लगभग हर राजनीतिक क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभाता है।
मिश्रा का मानना है कि यदि 2027 में कुर्मी वोटर पूरी तरह छिटक गया, तो बीजेपी को भारी नुकसान हो सकता है। इसलिए पार्टी इस समुदाय को सशक्त राजनीतिक संदेश देने के लिए कुर्मी समुदाय से नया प्रदेश अध्यक्ष चुनने पर गम्भीरता से विचार कर रही है।
यही कारण है कि कुर्मी समाज से आने वाले नेताओं—जैसे पंकज चौधरी और हरीश द्विवेदी—की चर्चा अचानक तेज हो गई है।
निषाद समीकरण: क्यों है बीजेपी के लिए मुश्किल?
कुर्मी के अलावा निषाद समुदाय को लेकर भी बीजेपी विकल्प तलाश रही है। निषाद राजनीति इसलिए अहम है क्योंकि पार्टी के सहयोगी संजय निषाद कई मौकों पर बीजेपी को कटघरे में खड़ा कर चुके हैं और उनके प्रभाव की सीमा भी सीमित मानी जाती है।
मिश्रा बताते हैं कि यूपी में निषादों के तीन प्रमुख राजनीतिक बेल्ट हैं—
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गोरखपुर से अंबेडकरनगर
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बनारस से फतेहपुर
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बुंदेलखंड क्षेत्र
हर क्षेत्र में प्रभाव और नेतृत्व अलग-अलग है। निषाद पार्टी पूरी शक्ति को अपने भीतर समेट लेती है, जिससे बीजेपी को पूरे लाभ नहीं मिलता।
इसलिए पार्टी चाहती है कि एक बड़ा निषाद चेहरा खुद तैयार किया जाए, ताकि तीनों क्षेत्रों में स्पष्ट संदेश जाए और निषाद वोट बैंक पर सीधे पार्टी का नियंत्रण बढ़े।
लोधी समाज: कल्याण सिंह के बाद खालीपन
लोधी वोट बैंक लंबे समय तक बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़ा रहा, जिसकी नींव कल्याण सिंह ने रखी थी। लेकिन उनके बाद यह समुदाय धीरे-धीरे पार्टी से दूर होता गया। लोधी समाज का प्रभाव कई जिलों में है—झांसी, एटा, बदायूं, बरेली, बुलंदशहर, रामपुर आदि। माना जाता है कि 8–10 लोकसभा सीटों पर लोधी वोट ही हार-जीत तय करते हैं। मिश्रा का कहना है कि बीजेपी ने धर्मपाल सिंह जैसे नेताओं को बड़े OBC चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया, जिससे नेतृत्व का खालीपन पैदा हो गया। अब पार्टी चाहती है कि एक बड़ा लोधी नेता उभरे, ताकि खोया हुआ वोट वापस आए और साथ ही मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में भी राजनीतिक संदेश जाए।
2027 की तैयारी: क्यों ज़रूरी है OBC नेतृत्व?
बीजेपी की रणनीति स्पष्ट है—
इन तीनों OBC पावर ब्लॉक्स को मज़बूत करके पार्टी 2027 के लिए दमदार सामाजिक समीकरण तैयार करना चाहती है।
योगेश मिश्रा का कहना है कि यूपी की राजनीति में OBC वर्ग ही असली ‘कुंजी’ है। जो भी इस वर्ग का भरोसा जीतता है, यूपी में सत्ता का रास्ता उसी के लिए आसान होता है।