लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बुधवार को संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की। यह बैठक चीफ इंफॉर्मेशन कमिश्नर (CIC) और सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर (CVC) में विजिलेंस कमिश्नर के चयन को लेकर हुई, जो करीब सवा घंटे तक चली।
CIC और CVC नामों पर 'डिसेंट नोट'
सूत्रों के अनुसार, यह बैठक CIC के प्रमुख और सदस्यों के साथ-साथ CVC और आठ इंफॉर्मेशन कमिश्नर की नियुक्ति पर चर्चा के लिए बुलाई गई थी। सरकार की तरफ से रखे गए नामों पर राहुल गांधी ने अपनी असहमति (डिसेंट नोट) दर्ज कराई है।
चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (राहुल गांधी) और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं। चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति होने पर भी, सरकार को मनपसंद नाम चुनने से रोकने की शक्ति नहीं होती, लेकिन विपक्ष के नेता की असहमति को दर्ज करना अनिवार्य होता है।
EC पर गंभीर आरोप: 'वोट चोरी का हथियार'
बैठक के बाद, राहुल गांधी ने सरकार पर चुनाव आयोग (EC) को लेकर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि बीजेपी चुनाव आयोग को "वोट चोरी करने का हथियार" बना रही है।
उन्होंने 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट के माध्यम से जनता से तीन सीधे और जरूरी सवाल पूछने की बात कही:
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प्रधान न्यायाधीश (Chief Justice) को चुनाव आयोग से संबंधित चयन समिति से क्यों हटाया गया?
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2024 चुनाव से पहले चुनाव आयोग को लगभग पूरी कानूनी सुरक्षा क्यों दी गई?
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सीसीटीवी फुटेज को 45 दिन में नष्ट करने की इतनी जल्दबाजी क्यों?
राहुल गांधी ने आरोप लगाया, "जवाब एक ही है कि चुनाव आयोग को वोट चोरी करने का औजार बनाया जा रहा है।"
2023 के चुनाव कानून को बदलने की चेतावनी
राहुल गांधी ने मंगलवार को लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा-शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम-2023 को लेकर कड़ी चेतावनी दी थी।
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उन्होंने कहा था कि यह कानून चुनाव आयुक्तों को इतनी ताकत देता है कि वे जो चाहें करें।
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इस कानून में चयन समिति से प्रधान न्यायाधीश को बाहर रखा गया है, जिसके कारण यह विवादित है।
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उन्होंने जोर देकर कहा था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर इस कानून में पूर्वव्यापी प्रभाव से संशोधन किया जाएगा और चुनाव आयुक्तों को कठघरे में लिया जाएगा।
2023 के इस कानून के तहत 3 सदस्यीय चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं, जबकि पहले इस समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल होते थे। विपक्ष का आरोप है कि प्रधान न्यायाधीश को हटाने से सरकार को अपनी पसंद के अधिकारी नियुक्त करने में आसानी होती है, जिससे चुनाव आयोग की निष्पक्षता प्रभावित होती है।