नई दिल्ली, 21 मार्च 2025: आखिरकार 13 महीनों से जारी किसान आंदोलन का मुख्य केंद्र शंभू-खनौरी बॉर्डर अब पूरी तरह से खाली करा लिया गया है। हरियाणा और पंजाब पुलिस की संयुक्त कार्रवाई के बाद यह कदम उठाया गया। पिछले साल से चल रहे इस आंदोलन को खत्म करने के लिए प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया। मंगलवार देर शाम पंजाब पुलिस ने धरने पर बैठे लगभग 200 किसानों को हिरासत में लिया, जबकि हरियाणा पुलिस ने प्रदर्शन स्थल से बैरिकेड्स और टेंट हटवाने के लिए बुलडोजर का सहारा लिया।
13 महीने की संघर्ष यात्रा का अंत
शंभू बॉर्डर, जो पंजाब और हरियाणा की सीमा पर स्थित है, पिछले 13 महीनों से किसानों के आंदोलन का केंद्र बना हुआ था। किसान एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की कानूनी गारंटी समेत अन्य मांगों को लेकर लगातार धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। इस दौरान किसानों ने भूख हड़ताल, अनशन, और कई बार लाठीचार्ज तक झेला, लेकिन सरकार से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। आखिरकार प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई करते हुए इस आंदोलन को खत्म कर दिया।
हरियाणा-पंजाब पुलिस की संयुक्त कार्रवाई
कार्रवाई से पहले दोनों राज्यों की पुलिस ने रणनीति बनाई थी। हरियाणा पुलिस ने विरोध प्रदर्शन को आगे बढ़ने से रोकने के लिए कड़े कदम उठाए। कंक्रीट के बैरिकेड्स और अन्य बाधाओं को बुलडोजर से हटा दिया गया। इस कार्रवाई के बाद शंभू बॉर्डर अब पूरी तरह से खाली हो चुका है। हालांकि, यह सवाल अब उठ रहा है कि आखिर किसानों की मांगों को क्यों अनसुना कर दिया गया?
रणदीप सिंह सुरजेवाला का तीखा हमला
कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस कार्रवाई पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "यह भारत के इतिहास में किसानों, गरीबों और मजदूरों के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात है। भाजपा नीत केंद्र सरकार और पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार ने मिलकर यह धोखा किया है।" सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि किसानों को बातचीत के नाम पर बुलाकर पहले आश्वासन दिया गया और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। "वे जैसे ही केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों से चर्चा करके बाहर आए, उन्हें हिरासत में ले लिया गया। उनके तंबू तोड़े गए, उन पर लाठीचार्ज हुआ। यह क्रूरता क्यों?" उनका कहना था कि यह केंद्र और पंजाब सरकार का मिलाजुला षड्यंत्र है।
किसानों का आंदोलन, लेकिन परिणाम शून्य
इन 13 महीनों के दौरान किसानों ने कई बार सरकार से बातचीत की कोशिश की, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। एमएसपी की गारंटी, कर्ज माफी, और पेंशन योजना जैसी प्रमुख मांगें अब भी अधूरी हैं। अब जब आंदोलन का मुख्य स्थल खाली हो गया है, तो सवाल यह उठता है कि किसानों को आगे क्या रास्ता अपनाना होगा? क्या आंदोलन का यह अंत है, या यह एक नई शुरुआत का संकेत है?
निष्कर्ष
शंभू-खनौरी बॉर्डर पर आंदोलन की समाप्ति एक युग के अंत की तरह है। किसान 13 महीने तक डटे रहे, लेकिन अंत में उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। अब सभी की नजरें सरकार पर और किसानों के अगले कदम पर टिकी हैं।