सोमवार को संसद के शीतकालीन सत्र में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ पर एक विशेष चर्चा हुई, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। इस दौरान एक अनूठा और हल्का-फुल्का सांस्कृतिक संवाद भी देखने को मिला, जब पीएम मोदी ने ‘वंदे मातरम’ के रचयिता और महान बंगाली कवि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को 'बंकिम दा' कहकर संबोधित किया।
'बंकिम दा' या 'बंकिम बाबू'?
प्रधानमंत्री के संबोधन पर तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद सौगत रॉय ने तुरंत आपत्ति जता दी। उन्होंने पीएम मोदी को टोकते हुए कहा कि आपको 'बंकिम बाबू' कहना चाहिए, न कि 'बंकिम दा'। रॉय ने 'दा' शब्द का अर्थ समझाते हुए कहा कि बंगाली में 'दा' का मतलब भाई होता है। हालांकि, यह सम्मान का सूचक है, लेकिन एक सांस्कृतिक प्रतीक और महान हस्ती के लिए 'बाबू' शब्द अधिक सम्मानजनक माना जाता है।
पीएम मोदी ने टीएमसी सांसद की बात को तत्काल स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा, "मैं बंकिम बाबू कहूंगा। धन्यवाद, मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूं।" इसके बाद पीएम मोदी ने मजाकिया लहजे में सौगत रॉय से पूछा, "मैं आपको दादा तो कह सकता हूं ना या इस पर भी आपको कोई आपत्ति है?" यह पूछकर उन्होंने माहौल को खुशनुमा बना दिया।
बंगाली में 'दादा' या 'दा' का महत्व
दरअसल, बंगाली संस्कृति में 'दादा' या 'दा' एक बेहद सम्मानजनक संबोधन है। इसका शाब्दिक अर्थ 'बड़ा भाई' होता है, लेकिन इसका उपयोग किसी भी सम्मानित, बड़े या पूजनीय व्यक्ति को बुलाने के लिए किया जाता है। जैसे कि भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को प्यार और सम्मान से 'दादा' कहा जाता है, और बॉलीवुड अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती को 'मिथुन दा' के नाम से जाना जाता है।