Film Review- बंटी और बबली 2
मनोरंजन को ठेंगा दिखाती बंटी और बबली की जोड़ी वाली इस फ़िल्म से दूर रहने में ही भलाई है.
कोई सगा नहीं जिसको ठगा नहीं, लूट ले वो दुनिया को ठेंगा दिखा के... गुलजार द्वारा लिखा यह गीत फिल्म बंटी और बबली का सार था. जो फिल्म की रिलीज के १६ साल बाद भी दर्शकों के जेहन में हैं. आज इस फिल्म के सीक्वल बंटी बबली २ ने सिनेमाघरों में दस्तक दी है. उम्मीद बहुत थी लेकिन इस बंटी बबली को देख दर्शक ठगा महसूस करते हैं. फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले दोनों बहुत ही कमज़ोर हैं. फिल्म सिर्फ हिट सीक्वल के फॉर्मूले को बनाने के लिए बनायी गयी है. यह कहना गलत नहीं होगा.
फ़िल्म की बेहद कमज़ोर कहानी और स्क्रीनप्ले की बात करें तो पिछली फ़िल्म बंटी बबली की तरह यहां भी कहानी दो युवा लोगों की है. इंजीनियरिंग ग्रेजुएटस कुणाल सिंह (सिद्धांत चतुर्वेदी )और सोनिया रावत ( शरवरी वाघ ) की है. जिनके कुछ सपने हैं. उन सपनों और थोड़ी सोशल सर्विस के लिए यह जोड़ी पुरानी बंटी बबली के नाम पर लोगों को ठगना शुरू करते हैं. वहीं ओरिजिनल बंटी राकेश ( सैफ अली खान ) और विम्मी ( रानी मुखर्जी ) ने 15 साल पहले ही ठगी से तौबा कर ली है. वे अपनी सामान्य ज़िन्दगी जी रहे हैं. जब उन्हें मालूम पड़ता है कि उनके नाम का गलत इस्तेमाल हो रहा है तो वे नए बंटी और बबली की तलाश में जुट जाते हैं. उनके साथ इंस्पेक्टर जटायु सिंह ( पंकज त्रिपाठी ) भी शामिल है. क्या नए बंटी बबली को ठगी करने से पुराने बंटी बबली रोक पाएंगे या कुछ कहानी मोड़ लेगी. यही कहानी है.
फिल्म का पहला भाग बहुत धीमा है. सिर्फ प्लाट बनाने में पहला हाफ निकल गया है. दूसरे भाग में कहानी जैसे रफ़्तार पकड़ती है. उसके सिचुएशन बेहद बचकाने से लगते हैं. लॉजिक को स्क्रिप्ट से बहुत दूर रखा गया है. इस बार के बंटी बबली गंगा नदी को लीज पर दे रहे हैं, लेकिन जो अंदाज अपनाते हैं, वह ऐसा लगता है मानो किसी तालाब को बेच रहे हों. ऐसे ही जितनी भी ठगी करते हैं, वे बचकानी सी लगती है. फिल्म की कहानी ही बुरी नहीं है बल्कि जिस तरह से उसे पर्दे पर परिभाषित किया गया है वह भी बहुत बुरा है. कहानी में ट्विस्ट और रोमांच दोनों की बहुत गायब है.
बैकड्रॉप चूंकि पुरानी वाली फिल्म का है. ऐसे में जेहन में यह बात रहती है कि पुराने वाली केमेस्ट्री नजर आएगी. कुछ हद तक राकेश उर्फ बंटी और विम्मी उर्फ बबली में वह दिखाई भी देती है.लेकिन युवा बंटी बबली में वह केमिस्ट्री मिसिंग है. अभिनय की बात करें तो पंकज त्रिपाठी ने सीमित दृश्यों में भी दिल जीता है. वह अपने गँवाई अंदाज़ में जटायु सिंह में एक अलग ही रंग भरते हैं. सिद्धांत और शर्वरी ने औसत ही काम किया है. सैफ अली खान उम्दा एक्टर हैं. उनसे अधिक की उम्मीद थी. रानी मुखर्जी अपने पुराने अंदाज़ में नज़र आयी हैं.
गीत संगीत के पहलू पर गौर करें तो बंटी और बबली के सारे गाने आज भी बहुत लोकप्रिय हैं. संगीत हमेशा से ही यशराज फिल्मों की सबसे बड़ी खासियत रहा है लेकिन इस फिल्म की खामियों में इसका गीत संगीत भी शामिल है. दूसरे पहलुओं पर गौर करें तो फिल्म के संवाद अति औसत हैं. जिन्हे सुनकर मुश्किल से हंसी आती है. सिनेमेटोग्राफी अच्छी हैं. कुलमिलाकर मनोरंजन को ठेंगा दिखाती बंटी और बबली की जोड़ी वाली इस फ़िल्म से दूर रहने में ही भलाई है.