<strong>मुंबई, 24 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)</strong> इस वर्ष जन्माष्टमी का पावन पर्व 26 अगस्त, सोमवार को मनाया जाएगा। इस बार जन्माष्टमी पर जयंती योग बन रहा है। जयंती योग भगवान कृष्ण के जन्म के समय बना विशेष योग है।<br /> <br /> देवघर के पागल बाबा आश्रम स्थित मुद्गल ज्योतिष केंद्र के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने बताया कि इस वर्ष इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप, जिन्हें लड्डू गोपाल के नाम से भी जाना जाता है, की पूजा की जाएगी।<br /> <br /> भगवान श्री कृष्ण का विशेष श्रृंगार करना चाहिए और भगवान श्री कृष्ण को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाना चाहिए। इसके अलावा, इस दिन भगवान श्री कृष्ण को झूला जरूर झुलाना चाहिए। कुछ ऐसी चीजें हैं जो भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय हैं और जिन्हें जन्माष्टमी से पहले अपने घर में लाकर रख लेना चाहिए।<br /> <br /> <strong>जन्माष्टमी से पहले आपको कौन सी चीजें लानी चाहिए</strong><br /> <br /> ज्योतिषियों का कहना है कि कुछ चीजें भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय हैं और अगर ये चीजें घर में रखी जाती हैं तो भगवान कृष्ण उस घर में निवास करते हैं। सुख-समृद्धि में वृद्धि के साथ-साथ उस घर में हमेशा धन-संपत्ति बनी रहती है।<br /> <br /> <strong>बांसुरी</strong><br /> <br /> भगवान कृष्ण को बांसुरी बहुत प्रिय है। अगर आप बांसुरी लाकर घर में रखेंगे तो घर में कभी भी पारिवारिक कलह नहीं होगी।<br /> <br /> <strong>मोर पंख</strong><br /> <br /> भगवान कृष्ण को मोर पंख बहुत प्रिय है। भगवान कृष्ण की कोई भी छवि बिना मोर पंख के शायद ही देखने को मिले। इसलिए जन्माष्टमी से पहले घर के पूजा स्थल पर मोर पंख जरूर रखें। इससे घर में हमेशा धन-संपत्ति बढ़ती रहेगी और परिवार में शांति का माहौल बना रहेगा।<br /> <br /> <strong>गाय और बछड़ा</strong><br /> <br /> जन्माष्टमी के दिन या उससे पहले बछड़े वाली गाय की मूर्ति खरीदें। इसे कामधेनु गाय का प्रतीक माना जाता है। यह समुद्र मंथन के दौरान निकले 14 रत्नों में से एक है। अगर आप यह मूर्ति खरीदकर अपने पूजा स्थल पर रखेंगे तो घर में संतान सुख की प्राप्ति होगी और मानसिक और शारीरिक तनाव से मुक्ति मिलेगी।<br /> <br /> जन्माष्टमी हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने हिंदू परंपरा के अनुसार चार युगों में से तीसरे युग द्वापर युग के दौरान अपना दिव्य रूप दिखाया था। उनका उद्देश्य नैतिक पतन के समय ब्रह्मांडीय व्यवस्था को फिर से स्थापित करना था।