मुंबई, 21 अक्टूबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट ने मदरसों को लेकर दो फैसले दिए। पहला, केंद्र और राज्य सरकारों को मदरसे बंद करने के फैसले पर रोक लगा दी। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने 7 जून और 25 जून को राज्यों को इससे संबंधित सिफारिश की थी। केंद्र ने इसका समर्थन करते हुए राज्यों से इस पर एक्शन लेने को कहा था। दूसरा, कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकार के उस आदेश पर भी रोक लगाई, जिसमें मदरसों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को सरकारी स्कूल में ट्रांसफर करना था। इसमें गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के साथ-साथ सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले गैर-मुस्लिम स्टूडेंट्स शामिल हैं। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। बेंच ने केंद्र सरकार, NCPCR और सभी राज्यों को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते के भीतर जवाब मांगा। बेंच ने कहा कि यह रोक अंतरिम है। जब तक मामले पर फैसला नहीं आ जाता, तब तक राज्य मदरसों पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकेंगे। बेंच ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद को उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा के अलावा अन्य राज्यों को भी याचिका में पक्षकार बनाने की अनुमति दे दी।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने 12 अक्टूबर को कहा था कि 'राइट टु एजुकेशन एक्ट 2009' का पालन नहीं करने वाले मदरसों की मान्यता रद्द हो और इनकी जांच की जाए। NCPCR ने सभी राज्यों को लेटर लिखकर कहा था कि मदरसों को दिया जाने वाला फंड बंद कर देना चाहिए। ये राइट-टु-एजुकेशन (RTE) नियमों का पालन नहीं करते हैं। आयोग ने 'आस्था के संरक्षक या अधिकारों के विरोधी: बच्चों के संवैधानिक अधिकार बनाम मदरसे' नाम से एक रिपोर्ट तैयार करने के बाद ये सुझाव दिया था। आयोग ने कहा था कि, 'मदरसों में पूरा फोकस धार्मिक शिक्षा पर रहता है, जिससे बच्चों को जरूरी शिक्षा नहीं मिल पाती और वे बाकी बच्चों से पिछड़ जाते हैं।'