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मिर्ज़ापुर सीजन 3 - भोकाल बरक़रार हैं, लेकिन दम थोड़ा कम हैं

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Posted On:Saturday, July 6, 2024

निर्देशक: गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर
कलाकार: पंकज त्रिपाठी, अली फजल, श्वेता त्रिपाठी शर्मा, रसिका दुगल, विजय वर्मा, ईशा तलवार, अंजुम शर्मा, प्रियांशु पेनयुली, हर्षिता शेखर गौर, राजेश तैलंग, शीबा चड्ढा, लिलिपुट फारुकी और अनंग्शा बिस्वास
अवधि: 45 मिनट के 10 एपिसोड
प्लेटफॉर्म – प्राइम वीडियो
रेटिंग - 4 

मिर्जापुर शुरू भौकाल के साथ हुआ था, और वही भौकाल कायम है लेकिन इस बार पहले दो सीजन के मुकाबले सीजन थोड़ा फीका लगरहा है. लेकिन तब भी मिर्जापुर के फैन हैं तो देखना तो बनता है, हालांकि सीरीज दमदार हैं क्योंकि सीरीज के किरदार और कहानी हमेंपसंद हैं, लेकिन नयेपन और बांधे रखने के मामले में सीजन 3 थोड़ा चूक गया हैं. 
 
मिर्जापुर 3 से उम्मीदें काफी ज्यादा थी, ये सीरीज अच्छी है लेकिन शानदार नहीं और हां खराब तो बिल्कुल नहीं है. मिर्जापुर के फैंस कोअच्छी तो लगेगी लेकिन उन्हें भी भौकाल में कमी जरूर महसूस होगी. कई सीक्वेंस जरूरत से ज्यादा खींचे गए हैं, गुड्डू भैया के कंधों पर पूरीजिम्मेदारी है. वो जब जब आते हैं मजा आ जाता है, लेकिन 10 एपिसोड को गुड्डू भैया अकेले तो खींच नहीं सकते थे.
 
मुन्ना भैया इस दुनिया से जा चुके हैं, कालीन भैया कोमा में हैं और गुड्डू भैया मिर्जापुर की गद्दी पर बैठ चुके हैं. लेकिन पूर्वांचल का बाहुबलीकौन होगा, इस पर लड़ाई अब भी जारी है. शरद शुक्ला को भी पूर्वांचल की गद्दी चाहिए और शत्रुघन को भी यही चाहिए. इस बीचराजनीति का अलग खेल चल रहा है, पंडित जी पर एसएसपी की मौत का केस चल रहा है, वहीं डिंपी और रॉबिन की लव स्टोरी भी आगेबढ़ती है. लेकिन गद्दी पर कौन बैठेगा, कालीन भैया का क्या होगा, ये सब जानने के लिए आपको मिर्जापुर का सीजन 3 देखना पड़ेगा.
 
मिर्जापुर यानि वो सीरीज जिसका भौकाल है, जिसका एक अलग फैन बेस है. इस सीरीज को देखने के लिए लोग खासतौर पर छुट्टी लेतेहैं, लेकिन इस बार भौकाल पहले दो सीजन के मुकाबले कम है. सीरीज थोड़ी खींची हुई लगती है, भौकाल वाले सीन भी कम हैं औरवॉयलेंस कम है. मुन्ना भैया की कमी खलती है और कालीन भैया भी ज्यादा भौकाल नहीं मचाते हैं. कुछ एक सीन हैं जो मजेदार हैं लेकिनऐसे सीन कम हैं, और एक-दो ही ऐसे सीन हैं जो आपको हिला डालते हैं.
 
 
अली फजल ने गुड्डू भैया के किरदार में जान डाली है. वो जिस तरह से लोगों को मारते हैं, हिला डालते हैं. इस बार उन्होंने एक अलग तरहका इमोशन भी दिखाया है. ये सीजन अली फजल के कंधों पर टिका है और उन्होंने पूरी तरह से इंसाफ किया है. पंकज त्रिपाठी का रोलऔर भौकाल दोनों कम है, इसलिए मजा भी कम आया है. बाकी त्रिपाठी जी तो मंझे हुए एक्टर है, सबके कालीन भैया हैं तो उनकी एक्टिंगतो कमाल की है ही. रसिका दुग्गल यानि बीना भाभी का काम शानदार है, वो पल पल रंग बदलती हैं और इन शेड्स को रसिका नेजबरदस्त अंदाज में पेश किया है.
 
अंजुम का काम अच्छा है और उनका रोल भी बड़ा और काफी अहम है. विजय वर्मा ठीक-ठाक हैं, वो पिछले तीन साल में इतना आगे बढ़चुके हैं कि उनसे उम्मीदें अब बहुत ज्यादा की रहती हैं और यहां उनका किरदार शायद उतनी मजबूती से लिखा नहीं गया लेकिन कामउन्होंंने अच्छा किया है. श्वेता त्रिपाठी शर्मा यानि गोलू ने शानदार काम किया है. गुड्डू भैया का जबरदस्त तरीके से साथ दिया है और खूबभौकाल मचाया है.
 
राजेश तैलंग को इस बार काफी स्पेस दिया गया है और उन्होंने अपने काम के साथ पूरी तरह से इंसाफ किया है. मुख्यमंत्री के किरादर मेंईशा तलवार जमी हैं, दद्दा के रोल में लिलिपुट ने बहुत अच्छा काम किया है, प्रियांशू पेन्यूली का काम भी ठीक-ठाक है.
 
गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर ने शो को डायरेक्ट किया है और उनका डायरेक्शन ठीक है, उनसे बेहतर की उम्मीद थी. मिर्जापुर जैसीसीरीज में भौकाल बढ़ना चाहिए था, लेकिन यहां कम हुआ और इसका वजह कहीं ना कहीं डायरेक्टर हैं. उन्हें कुछ और मसाले ऐसे डालनेचाहिए थे कि दर्शक बंधे रहें. कुल मिलाकर शो देखा जा सकता है, बहुत शानदार नहीं है लेकिन मिर्जापुर के फैन हैं तो मिस मत कीजिए.


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